23-10-75   ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन 

इन्तज़ार को छोड़कर इन्तज़ाम करो!

विश्व की तकदीर को ऊंचा बनाने वाले, मायावी-सृष्टि का महाविनाश कर दैवी-सृष्टि की स्थापना करने वाले, रचयिता शिव बाबा, नव-निर्माण के इन्तज़ाम में एक-जुट हो जाने का आह्वान करते हुए बोले:-

आज बापदादा विश्व की तकदीर बनाने वाले तकदीर-वान बच्चों की तस्वीर देख रहे हैं। किस-किस आत्मा में कौन-कौन सी तकदीर की लकीरें दिखाई देती हैं और कौन-कौनसी अब स्पष्ट होने वाली है? हर एक के तकदीर की लकीर अपनी-अपनी दिखाई दे रही है। तकदीर की रेखाओं में मुख्य चार सब्जेक्ट्स की चार रेखायें दिखाई देती है। बहुत थोड़े बच्चे हैं जिनकी चारों की चारों ही रेखायें स्पष्ट हैं अर्थात् चारों ही सब्जेक्ट्स में तदबीर द्वारा अपनी ऊंची तकदीर बनाई है। इस प्रमाण पास विद् ऑनर्स और फर्स्ट क्लास अर्थात् फर्स्ट डिवीज़न में ऐसे तकदीरवान ही आयेंगे जिन्हों की चारो ही तकदीर की लकीरें स्पष्ट हैं। पास विद् ऑनर्स की तकदीर की लकीरें चारों ही ओर एक समान चमकती हुई स्पष्ट दिखाई देती हैं। जो हैं ‘अष्ट रत्न।’ दूसरे नम्बर में फर्स्ट डिवीज़न वाले सौ रत्न, जिनकी चारों ही लकीरें दिखाई देती हैं लेकिन समान स्पष्ट रूप नहीं हैं। कोई ज्यादा तेज हैं, कोई कुछ कम। सेकेण्ड डिवीज़न सोलह हजार। उन सोलह हजार में से पहले दो तीन हजार की रेखाओं में चार सब्जेक्ट्स में से तीन सब्जेक्ट्स 50% मार्क्स में पास हैं और एक सब्जेक्ट्स में 25%  में पास हैं अर्थात् न के बराबर हैं। ऐसे सर्व तकदीरवानों की तकदीर देखी। 

आज बापदादा चारों तरफ के ब्राह्मण बच्चों की जन्म-पत्री देख रहे थे। जन्म-पत्री देखते वर्तमान समय मैजॉरेटी के अन्दर एक विशेष संकल्प चलता हुआ देखा। वह क्या? विश्व की आधारमूर्त्त आत्मायें भी कोई आधार पर खड़ी हुई देखीं। वह आधार क्या? दुनिया के विनाशकारी साधनों को देखते हैं वा प्रकृति की हलचल कब होती है, कहाँ होती है, होती है या नहीं होती है? - इस आधार पर आधारमूर्त्त को खड़े हुए देखा। ऐसे आधार पर ठहरने वाले बच्चों से बापदादा का प्रश्न है कि स्थापना करने वाले विनाश के आधार पर रहेगे तो स्थापना करने वालों का भविष्य क्या होगा? विनाश ज्वाला प्रज्जवलित करने के आधारमूर्त्त कौन? प्रकृति का परिवर्तन करने वाले कौन? प्रकृति व विनाश के साधनों के आधार पर खड़े हुए पुरूषों से उत्तम पुरूषोत्तम हो सकते हैं अथवा पुरूषोत्तम के ऑर्डर पर अर्थात् श्रेष्ठ संकल्प के आधार पर, सर्व आधारमूर्त्तो के सम्पूर्ण बनने के आधार पर विनाशकारी साधन व प्रकृति अपना कार्य करेगी? ऑर्डर देने वाला कौन? अधिकारी कौन - प्रकृति या पुरूषोत्तम? आधारमूर्त्त का किसी आधार पर रहना उनको अधिकारी कहेंगे? तो क्या देखा?-इन्तज़ाम करने वाले इन्तज़ार में हैं। इंतज़ाम करने में अलबेलापन और इंतज़ार करने में अलर्ट (चौकन्ने) हैं। इसको देखते हुए बापदादा को हँसी भी आई और रहम भी आया, - क्यों? माया की चतुराई को अब तक बच्चे परख नहीं सके हैं। इन्तज़ार की मीठी नींद में माया सुला रही है और बच्चे आधे कल्प के सोने के संस्कार-वश हो कर कोई तो सेकेण्ड का झुटका खाते हैं और फिर होश में आते हैं, फिर इन्तज़ाम करने के जोश में आ जाते हैं और कोई तो कुछ मिनटों के लिये सो भी जाते हैं, फिर जोश और होश में आते हैं। तीसरी प्रकार के बच्चे काफी आराम से सोते-सोते बीच-बीच मे ऑख खोल कर देखते रहते हैं कि अभी कुछ हुआ, अभी तक तो कुछ नहीं हुआ है। जब होगा तब देखा जायेगा। यह दृश्य देख क्या हंसी नहीं आयेगी? 

तीसरा नेत्र मिलते हुए भी माया को परख नहीं सकते, इसलिये माया को अच्छी तरह से परखने के लिये परख-शक्ति को विशेष रूप से अपने में धारण् करो। दो मास हैं या चार मास हैं, यह समय की गिनती नहीं करो लेकिन स्वयं को समर्थ बनाओ। होगा अथवा नहीं होगा, क्या होगा और कब होगा? इन संकल्पों के बजाए पुरूषोत्तम स्थिति में स्थित हो संगठन को सम्पूर्ण बनाने के संकल्प के आधार से प्रकृति को ऑर्डर देने के अधिकारी बनो। होना तो चाहिए लेकिन पता नहीं क्या होगा, शायद हो, दो चार मास में तो कुछ दिखाई नहीं देता है, संगमयुग चालीस वर्ष का है अथवा पचास वर्ष का है - इसी प्रकार के संकल्प भी सम्पूर्ण निश्चय के आगे बाप के व स्वयं के स्थापना के कार्य में विघ्न डालने वाला अति सूक्ष्म रूप का रॉयल संशय है। जब तक यह संशय है तब तक सम्पूर्ण विजयी नहीं बन सकते। गायन ही है - ‘निश्चय बुद्धि विजयन्ति।’ तो विजयी आत्मा को संशय के रॉयल रूप का संकल्प हो नहीं सकता। 

सम्पूर्ण निश्चय बुद्धि अपने विश्व-परिवर्तन के कार्य में दिन-रात बिज़ी रहेगे। जैसे कोई विशेष कार्य की ज़िम्मेवारी होती है तो दिन-रात इन्तज़ाम में लग जाते हैं, न कि इन्तज़ार करते हैं कि जब टाइम होगा तब स्टेज सजायेंगे व साधनों को अपनायेंगे। समय के पहले इन्तज़ाम किया जाता है। तो विश्व के परिवर्तन की ज़िम्मेवारी, यह भी परिवर्तन समारोह अभी मनाने का है। सर्व आत्माओं को अपने-अपने अनुसार सतोप्रधान बनाने का व बाप का परिचय देने का विशाल विश्व का सम्मेलन करना है। इसके लिये पहले से ही आप को अपनी स्थिति की स्टेज बनाने का इन्तज़ाम करना है या उस समय करोगे? जैसे स्थूल स्टेज के बिना, भाषण करना व सन्देश देना नहीं हो सकता वैसे अन्तिम समय पर स्वयं के सम्पूर्ण स्थिति की स्टेज बिना विशाल विश्व-सम्मेलन में सन्देश कैसे दे सकेंगे? अर्थात् बाप को प्रसिद्ध व प्रख्यात कैसे कर सकेंगे? तो स्टेज को पहले से तैयार करेंगे अथवा उस समय करेंगे? इसलिए इन्तज़ार को छोड़ इन्तज़ाम में लग जाओ। यह संकल्प भी व्यर्थ संकल्प है, इस व्यर्थ को भी समर्थ में परिवर्तन करो। अधिकारी बनो। प्रकृति को ऑर्डर करने के समर्थ स्टेज को बनाओ। संगठित रूप से सर्व ब्राह्मणों के अन्दर रहम की भावना, विश्व-कल्याण की भावना, सर्व-आत्माओं को दु:खों से छुड़ाने की शुभ कामनाए जब तक दिल से उत्पन्न नहीं होंगी तब तक विश्व-परिवर्तन रूका हुआ है। अभी हलचल में हो - एक ही संकल्प में अचल और अटल नहीं हो। अंगद समान अडोल बनना अर्थात् अन्तिम घड़ी लाना। तो संगठित रूप से ऐसे एक संकल्प को अपनाओ अर्थात् दृढ़ संकल्प की इकट्ठी अंगुली सभी दो, तो यह कलियुगी पर्वत परिवर्तन करके गोल्डन वर्ल्ड को ला सके। समझा? क्या इन्तज़ाम करना है? अच्छा। 

अन्त में बापदादा ने एक संकल्प में अंगद समान अचल रहने वाले कि - यह सब हुआ ही पड़ा है, ऐसे सम्पूर्ण निश्चय बुद्धि, हर संकल्प, बोल और कर्म में सदा विजयी, ऐसे अधिकारी बच्चों को याद-प्यार दिया और नमस्ते की। 

दीदी जी के साथ

संगठन का बल अर्थात् एक ही संकल्प

रूहानी यात्री जो डबल यात्रा करने आते हैं - एक मधुबन की यात्रा, दूसरी विशेष मधुबन में रूहानी यात्रा। तो डबल यात्रा करने वाले यात्री जो भी आते हैं वह आराम से अपनी यात्रा सफल करके जाते हैं। सब सन्तुष्ट रहते हैं। गाया जाता है कि यदि दिल बड़ा है, तो जगह भी बड़ी है। स्थूल जगह भले ही कम हो लेकिन आने वालों की, स्वागत करने वालों की और सैट करने वालों की दिल बड़ी है तो जगह की कमी महसूस नहीं होगी। फिर 63 जन्मों की, की हुई यात्राओं से तो सब सेलवेशन्स संगम की यात्रा पर ज्यादा मिलती हैं। वह जड़ चित्रों की यात्रा कितनी मुश्किल होती है। 

आप लोग भी तो यह देख-रेख करती हो कि हमारा संगठन एक संकल्प वाला कहाँ तक बना है? शास्त्रों में गायन है कि ब्रह्मा को संकल्प उठा कि सृष्टि रचें तो सृष्टि रची गई। यहाँ अकेले ब्रह्मा की तो बात नहीं, लेकिन ब्रह्मा सहित सब ब्राह्मणों का भी जब एक साथ यह संकल्प उठे कि अब हम सब एवररेडी हैं और नई दुनिया की स्थापन होनी ही चाहिए या होगी ही - ऐसा दृढ संकल्प जब ब्राह्मणों के अन्दर उत्पन्न हो, तब ही सृष्टि का परिवर्तन हो अर्थात् नई सृष्टि की रचना प्रैक्टिकल में दिखाई दे। इसमें भी संगठन का बल चाहिए। एक दो का वा सिर्फ आठ का नहीं, लेकिन सारे संगठन का एक संकल्प चाहिये। संकल्प से सृष्टि रचना, इसका रहस्य इस प्रकार से है। संकल्प उत्पन्न होगा और सेकेण्ड में समाप्ति का नगाड़ा बजना शुरू हो जायेगा। 

एक तरफ समाप्ति का नगाड़ा, दूसरी तरफ नई दुनिया का नज़ारा साथ-साथ दिखाई देगा। वहाँ ही विनाश की अति होगी और वहाँ ही जलमई के बीच चारों ओर विनाश में एक हिस्सा धरती और बाकी तीन हिस्सा तो जलमई होगी ना? यह जो सभी पीछेपीछे अनेक धर्मो के कारण अनेक देश बने हैं, वह अनेक धर्म जब समाप्त होंगे तो अनेक देश भी एक सैरगाह के रूप में जल के बीच एक टापू के मुआफिक हो जायेंगे। तो एक तरफ विनाश की अति के नगाड़े होंगे, दूसरी तरफ फर्स्ट प्रिन्स (श्रीकृष्ण) के जन्म का आवाज बुलन्द होगा, वह पत्ते पर नहीं आयेगा। दिखाते हैं ना जलमई के बाद पत्ते पर श्रीकृष्ण आया। तीन हिस्से जलमई में होने के कारण भारत जब परिस्तान बनता है तो उसको जलमई दिखा दिया है। ऐसे जलमई के बीच पहला पत्ता जो फर्स्ट आत्मा है उसके जन्म का चारों ओर आवाज प्रसिद्ध होगा कि फर्स्ट प्रिन्स प्रत्यक्ष हो चुका है, जन्म हो चुका है। तो वह भी अति में होगा अर्थात् जलमई के तीन हिस्से का नज़ारा होगा और एक हिस्सा भारत-परिस्तान के रूप में प्रगट होगा। जो दिखाते हैं कि सोने की द्वारिका पानी से निकल आयी, लेकिन पानी से नहीं - तीन हिस्से पानी में होंगे। इसलिये पानी के बीच सोने की द्वारिका दिखाई देगी। इसलिये कहते हैं कि सोने की द्वारिका पानी से निकल आयी। सिर्फ उस बात का पूरा वर्णन नहीं कर सके हैं और उसी समय पर फर्स्ट आत्मा के जन्म की जयजयकार होगी। ऐसे नज़ारे सामने आते हैं तो पुरानी दुनिया के महाविनाश का नगाड़ा और नये फर्स्ट प्रिन्स के जन्म का नज़ारा साथसाथ दिखाई देगा। जैसे नगाड़ा बजाने से पहले नगाड़े को गर्म किया जाता है तब आवाज बुलन्द होती है। यह भी योग अग्नि से नगाड़ा बजने के पहले तैयारी चाहिए तब नगाड़े में आवाज़ बुलन्द होगी। इन्तज़ाम में लगे हुए हो ना? इन्तज़ार करने वालों को भी इन्तज़ाम में लगाओ तब जयजयकार हो जायेगी। 

जब शरीर को चलाना आ जायेगा तब राज्य चलाना आ जायेगा। शरीर को चलाना अर्थात् राज्य करना। तो राज्य करने के संस्कार भरने हैं ना? नॉलेजफुल कहा जाता है तो फुल नालेज में तन, मन, धन और जन सब आ जाता है। अगर एक की भी नॉलेज कम है तो नॉलेजफुल नहीं कहेंगे। समझा? सदा सफलतामूर्त बनने का आधार भी नॉलेजफुल है। नॉलेज नहीं तो सफलतामूर्त भी नहीं हो सकते। समय के प्रमाण पुरूषार्थ की गति भी तीव्र होनी चाहिए। समय की रफ्तार तेज है और चलने वालों की रफ्तार ढीली है तो समय पर कैसे पहुँचेंगे? ‘एक बल, एक भरोसा’, - यह है मुख्य सब्जेक्ट। हर समय एक की ही याद में एक-रस रहना। इसी पुरूषार्थ में ही सदा सफल हो तो मुज़िल पर पहुँच ही जायेंगे। जो अटूट स्नेह में रहते हैं उनको सहयोग भी स्वत: प्राप्त होता है। 

मुरली है लाठी, इस लाठी के आधार से कोई कमी भी होगी तो वह भर जायेगी। यह आधार ही अपने घर तक और अपने राज्य तक पहुँचायेगा लेकिन लक्ष्य से, नियमपूर्वक नहीं, लेकिन लगन से। तो लगन से मुरली पढ़ना व सुनना अर्थात् मुरलीधर की लगन में रहना। मुरलीधर से स्नेह की निशानी ‘मुरली’ है। जितना मुरली से स्नेह है उतना ही समझो मुरलीधर से भी स्नेह है। सच्चे ब्राह्मण की परख मुरली से होगी। मुरली से लगन अर्थात् सच्चा ब्राह्मण। मुरली से लगन कम अर्थात् हाफ-कास्ट ब्राह्मण।